Indigo Crisis : क्या इंडिगो संकट भारत की इकोनॉमिक पॉलिसी पर सवाल खड़े करता है

Indigo Crisis : नई दिल्ली। भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो (IndiGo) में हाल ही में सामने आया संकट केवल एक कंपनी की परिचालन विफलता नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़े संरचनात्मक खतरे का संकेत माना जा रहा है। नवंबर और दिसंबर 2025 में इंडिगो की हजारों उड़ानों के रद्द होने से न सिर्फ लाखों यात्री प्रभावित हुए, बल्कि यह सवाल भी खड़ा हो गया कि अगर किसी एक बड़ी कंपनी में गड़बड़ी हो जाए, तो पूरा सेक्टर कैसे ठप पड़ सकता है?

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नवंबर-दिसंबर में कैसे बिगड़े हालात?

3 से 9 नवंबर के बीच इंडिगो की 5,000 से ज्यादा फ्लाइट्स कैंसिल हुईं। इसके पीछे पायलट और क्रू मेंबर्स को अधिक आराम देने से जुड़ा नया नियम प्रमुख वजह बताया गया।

हालात तब और बिगड़ गए जब दिसंबर के पहले हफ्ते में एक ही दिन में 1,000 से ज्यादा उड़ानें रद्द करनी पड़ीं।

  • करीब 10 लाख से ज्यादा बुकिंग्स प्रभावित हुईं

  • देशभर के एयरपोर्ट्स पर अफरा-तफरी मच गई

  • यात्रियों को घंटों दिनों तक एयरपोर्ट पर इंतजार करना पड़ा

सरकार को क्यों करना पड़ा हस्तक्षेप?

यात्रियों की बढ़ती परेशानी को देखते हुए केंद्र सरकार ने:

  • इंडिगो की ऑपरेशनल कार्यप्रणाली की जांच के आदेश दिए

  • नए सुरक्षा नियम को अस्थायी रूप से वापस लेना पड़ा

नागरिक उड्डयन मंत्री के. राम मोहन नायडू ने संसद में साफ कहा कि

“कोई भी एयरलाइन कितनी भी बड़ी क्यों न हो, गलत योजना बनाकर यात्रियों को परेशान नहीं कर सकती। इस मामले में सख्त कार्रवाई होगी।”

इंडिगो का दबदबा: समस्या की जड़?

विशेषज्ञों के मुताबिक, इस संकट की असली वजह है मार्केट में कम प्रतिस्पर्धा (Low Competition)।

  • इंडिगो के पास भारतीय डोमेस्टिक एविएशन मार्केट का 64% से ज्यादा हिस्सा

  • एयर इंडिया के पास लगभग 25% मार्केट शेयर

  • बाकी एयरलाइंस मिलकर भी 10–12% से ज्यादा हिस्सेदारी नहीं रखतीं

यानी अगर इंडिगो जैसे बड़े प्लेयर में समस्या आती है, तो पूरा एविएशन सेक्टर हिल जाता है।

शेयर बाजार ने भी दी सजा

इंडिगो संकट का असर शेयर बाजार में भी साफ दिखा।

  • इंडिगो का शेयर करीब 15% गिर गया

  • कंपनी की मार्केट वैल्यू में 4.8 अरब डॉलर (करीब 43,000 करोड़ रुपये) की गिरावट आई

यह निवेशकों के लिए भी एक चेतावनी थी कि ओवर-डॉमिनेंस कितना जोखिम भरा हो सकता है।

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