iPhone EMI जाल: क्यों लोग पुराने या बेचे गए फोन की भी किश्तें चुकाते रहते हैं? प्रीति अग्रवाल

iPhone 17 के लॉन्च के साथ ही ईएमआई पर फोन खरीदने की होड़ फिर तेज हो गई है। बाजार में ₹1.5 लाख के फोन को 24 महीने की आसान किश्तों पर लेना कई लोगों को सरल और कम खर्चीला लगता है, लेकिन यही फाइनेंस प्लान भविष्य में आर्थिक बोझ बन सकता है। नए फोन का आकर्षण जल्दी खत्म हो जाता है, उसकी रीसैल वैल्यू दो साल में लगभग आधी रह जाती है, लेकिन मासिक किश्तों का बोझ तब भी जारी रहता है.

ज्यादातर उपभोक्ता ईएमआई को “बिना ब्याज” या सामान्य सुविधा मानते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि डिस्काउंट और ऑफर छिन जाते हैं, प्रोसेसिंग फीस जुड़ती है, और असली कीमत फोन के जीवनचक्र में बहुत अधिक होती है। कई युवा आय का 20–25% सिर्फ फोन की किश्तों में लॉक कर देते हैं, और जरूरत की दूसरे निवेश, बीमा, या बचत पीछे छूट जाती है। उनके लिए यह न ‘इन्वेस्टमेंट’ होता है, न ‘एसेट’—बल्कि तेजी से घटती कीमत वाला कर्ज बन जाता है.

सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब लोग फोन बेच देते हैं या नया फोन लेने के लिए पुराने का एक्सचेंज करते हैं, लेकिन पिछली ईएमआई अभी भी उनकी जेब पर बोझ बनी रहती है। भारत जैसे देशों में, जहां iPhone एक महीने की आम सैलरी या उससे ज्यादा के बराबर है, वहां किश्तों की आदत असल में वित्तीय आज़ादी को बाधित करती है। कई बार तो उपभोक्ता अपनी जरूरी खर्च या सुरक्षा कम कर देते हैं ताकि फोन की किश्त समय पर जा सके।

The Finocrats की राय है—अगर फोन से सीधी आमदनी नहीं हो रही है, तो ईएमआई पर इतना महंगा फोन लेना लॉन्ग-टर्म नुक़सान है, शॉर्ट-टर्म खुशी के लिए नहीं। सच यह है कि बहुत बार ईएमआई फोन से कहीं ज्यादा लंबा चलती है और उसकी असली कीमत उसे खत्म होने के बाद महसूस होती है.

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