नई जीएसटी सुधारों से शुल्क की परेशानी क्या घटेगी? विशेषज्ञ बोले- निकट भविष्य में बड़ा असर नहीं: प्रीति अग्रवाल
GST काउंसिल की 3-4 सितंबर को होने वाली बैठक से देशभर के कारोबारियों और आम जनता की निगाहें प्रस्तावित जीएसटी दरों के पुनर्गठन (रैशनलाइजेशन) पर टिकी हैं। हाल के विश्लेषणों में जहां Ambit रिसर्च ने उम्मीद जताई है कि इस ढांचे में बदलाव से GDP को 50 बेसिस प्वाइंट तक बूस्ट और मंहगाई में कमी देखने को मिलेगी, वहीं Nomura का अनुमान है कि सरकार को ₹1.5 लाख करोड़ तक राजस्व घाटा सहना पड़ सकता है—जिससे राज्यों की माली हालत और केंद्र के फिस्कल डेफिसिट पर असर पड़ सकता है.
सरकार के प्रस्ताव के अनुसार, मौजूदा चार टैक्स स्लैब (5%, 12%, 18%, 28%) को घटाकर सिर्फ दो प्रमुख स्लैब (5% और 18%) किये जाने की तैयारी है। इसमें डेली यूटिलिटी आइटम्स, बीमा, छोटे वाहनों, पैकेज्ड फूड्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और सीमेंट जैसी जरूरी वस्तुएं सस्ती होने के आसार हैं। इस बदलाव से उपभोक्ताओं को घटी हुई कीमतों का लाभ तो मिलने वाला है, लेकिन राज्यों की जीएसटी वसूली प्रभावित हो सकती है—अभी विपक्षी सरकारें प्रति वर्ष ₹2 लाख करोड़ तक मुआवज़े की मांग कर रही हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि निकट भविष्य में जीएसटी सुधारों के राजस्व और मंहगाई पर त्वरित सकारात्मक असर दिखना मुश्किल है। दो-तिहाई राज्यों की स्वीकृति, राजस्व मुआवजे की गारंटी, और पारित नीतियों के क्रियान्वयन में कई व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं। कारोबारियों के लिए टैक्स कंप्लायंस और आईटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) क्लेम की प्रक्रिया सरल जरूर होगी, मगर फिस्कल बैलेंस, सब्सिडी स्ट्रक्चर और सरकार की राजकोषीय रणनीति पर पुराने दबाव बरकरार रहेंगे.
PM मोदी के अनुसार प्रस्तावित रिफॉर्म्स ‘डबल दिवाली’ का उपहार साबित हो सकते हैं, लेकिन विशेषज्ञों की राय है कि इनका दूरगामी असर तो दिखेगा, मगर अल्पकाल में राजकोषीय घाटे और संक्रमण काल की चुनौतीयां छुपे रहेंगी। आम उपभोक्ता के लिए जहां कुछ वस्तुएं सस्ती होती दिखेंगी, वहां राज्यों के लिए मुआवजा और केंद्र के लिए नई आर्थिक योजनाएं बनाना जरूरी होगा।









