बोर्ड की मंजूरी के बिना करोड़ों खर्च, CEO ने छोड़ी कुर्सी, कर्नाटक बैंक में मची हलचल: प्रीति अग्रवाल
कर्नाटक बैंक, जो एक सदी से अधिक पुराना निजी क्षेत्र का बैंक है, इन दिनों अपने शीर्ष प्रबंधन में उठे विवाद के कारण सुर्खियों में है। बैंक के CEO श्रीकृष्णन हरिहर शर्मा ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, और कार्यकारी निदेशक शेखर राव भी जुलाई के अंत तक इस्तीफा देने की संभावना है। यह घटनाक्रम न सिर्फ बैंकिंग सेक्टर बल्कि निवेशकों और नियामकों के लिए भी चिंता का विषय बन गया है।
क्या है विवाद की जड़?
मई 2025 में बैंक के स्टैच्यूटरी ऑडिटर्स ने अपनी रिपोर्ट में लगभग ₹1.53 करोड़ के खर्च पर सवाल उठाया, जो बैंक के CEO और ED द्वारा उनकी अधिकृत शक्तियों से बाहर जाकर किया गया था। यह खर्च मुख्यतः कंसल्टेंसी और अन्य सेवाओं के लिए हुआ, जिसे बोर्ड की मंजूरी नहीं मिली। ऑडिटर्स ने स्पष्ट किया कि यह राशि संबंधित निदेशकों से वसूल की जानी चाहिए।
CEO और बोर्ड के बीच मतभेद
बोर्ड और प्रबंधन के बीच यह मतभेद तब और गहरा गया जब CEO ने इन खर्चों को ‘सरल मामला’ बताते हुए इसे नीतिगत अस्पष्टता का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि नीति की व्याख्या में भ्रम था, जिसे अब ठीक कर लिया गया है और भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराई जाएगी। हालांकि, बोर्ड ने इस स्पष्टीकरण को स्वीकार नहीं किया और अंततः इस्तीफे की नौबत आ गई।
कॉरपोरेट गवर्नेंस पर सवाल
इस विवाद ने बैंक की कॉरपोरेट गवर्नेंस पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भले ही राशि बहुत बड़ी न हो, लेकिन बिना मंजूरी के खर्च और बोर्ड द्वारा उसे अस्वीकार करना बैंकिंग सेक्टर में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को दर्शाता है।
बैंक की वित्तीय स्थिति
इस विवाद के बीच, बैंक के वित्तीय नतीजे भी प्रभावित हुए हैं। वित्त वर्ष 2025 में बैंक का नेट प्रॉफिट मामूली रूप से घटकर ₹1,272.37 करोड़ रह गया, जबकि पिछले साल यह ₹1,306.28 करोड़ था। चौथी तिमाही में मुनाफा और भी गिरकर ₹252.37 करोड़ रह गया।
आगे की राह
अब बैंक के सामने सबसे बड़ी चुनौती है — नेतृत्व में स्थिरता लाना और निवेशकों का भरोसा बहाल करना। नियामक संस्थाओं और शेयरधारकों की नजरें बैंक की अगली रणनीति और नए नेतृत्व पर टिकी हैं।