साप्ताहिक विशेषांक: “पहलगाम और हम” — मंजुला श्रीवास्तव की कविता ने देश को किया आत्ममंथन के लिए मजबूर

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को गहरे आघात में डाल दिया है। इस भीषण घटना ने न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल खड़े किए, बल्कि हर भारतवासी के दिल को दर्द और गुस्से से भर दिया। इसी पृष्ठभूमि में “कलम की धार” साप्ताहिक विशेषांक में इस सप्ताह देश की प्रतिष्ठित कवयित्री मंजुला श्रीवास्तव की मार्मिक कविता “पहलगाम और हम” प्रकाशित की गई है।
मंजुला श्रीवास्तव की यह कविता उन चुभते हुए सवालों को सामने लाती है, जिन पर हर देशवासी को आत्मचिंतन करने की जरूरत है। कविता आतंकवाद के खिलाफ केवल सुरक्षा बलों पर निर्भर रहने के बजाय नागरिकों की जिम्मेदारी और सक्रिय भागीदारी पर बल देती है।
कविता का संदेश:
कविता के माध्यम से कवयित्री ने सवाल उठाया है कि क्या केवल सेना के भरोसे रहकर हम आतंकवाद का खात्मा कर पाएंगे? या फिर नागरिक के तौर पर भी हमें अपनी भूमिका निभानी होगी।
कविता का केंद्रीय भाव इस सवाल पर टिका है — “5 साल कश्मीर न जाएं तो क्या हम मर जाएंगे?”
यह पंक्ति एक प्रतीक बनकर उभरती है, जो पर्यटन से लेकर राष्ट्रीय स्वाभिमान तक हर पहलू पर गहरी चोट करती है।
महत्वपूर्ण अंश:
“पैसे-पैसे को कश्मीर को जब तरसाएंगे,
कश्मीरी तो क्या- नापाक पड़ोसी को भी
घुटनों के बल ले आएंगे।”
इस पंक्ति में कवयित्री ने कश्मीर में आर्थिक प्रतिबंधों के माध्यम से आतंकवाद के पोषकों को कमजोर करने की रणनीति का सुझाव दिया है। साथ ही, कविता आतंकवाद को “आतंक के दरवाजे पर ताला लगाने” की जरूरत की ओर भी इशारा करती है।
देशवासियों में जागरूकता की पुकार:
“पहलगाम और हम” कविता न केवल संवेदनाओं को झकझोरती है, बल्कि देशभक्ति की सच्ची भावना को भी जगाती है। कविता हर भारतीय को यह सोचने पर मजबूर करती है कि व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के बिना आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई अधूरी है।