विषय: देश में जैन मंदिरों एवं साधु-संतों के विरुद्ध हो रही दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए आवश्यक कार्यवाही हेतु निवेदन।

सविनय निवेदन है कि विगत दिनों देश के विभिन्न भागों से जैन मंदिरों एवं साधु-संतों के विरुद्ध अनेक अत्यंत पीड़ादायक एवं दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ सामने आई हैं, जिन्होंने सम्पूर्ण जैन समाज को व्यथित किया है एवं समाज में गहरी असुरक्षा की भावना को जन्म दिया है।

विशेष रूप से, मुंबई के विले पार्ले (पूर्व) स्थित एक 30 वर्ष पुराने जैन मंदिर को बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) द्वारा बिना किसी न्यायिक आदेश के अचानक ध्वस्त कर देना, न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि यह धार्मिक सहिष्णुता की भावना एवं भारतीय संविधान में निहित धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों पर भी गम्भीर प्रश्न खड़े करता है।

यह ज्ञात हुआ है कि एक व्यक्ति द्वारा उक्त मंदिर के सामने मांस एवं मद्य की दुकान खोलने का प्रयास किया गया, जिसका स्थानीय जैन समाज द्वारा शांतिपूर्ण विरोध किया गया। इसके पश्चात, कथित रूप से राजनीतिक दबाव के माध्यम से बीएमसी ने यह दुर्भाग्यपूर्ण कार्यवाही की। इस प्रकार की घटनाएँ धर्मनिरपेक्ष भारत की मूल भावना के सर्वथा विपरीत हैं।

महोदय, हम विशेष रूप से आपका ध्यान देश के प्रमुख जैन तीर्थस्थलों जैसे —
(1) श्री सम्मेद शिखरजी (झारखंड) तथा
(2) गिरनारजी (गुजरात)
पर हो रहे अवैध अतिक्रमण, व्यवसायीकरण एवं अनुचित गतिविधियों की ओर भी आकर्षित करना चाहते हैं।
ये तीर्थ स्थल केवल जैन समाज के लिए ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर हैं। इन पवित्र स्थलों पर हो रहे अवैध कब्जे एवं अपवित्र गतिविधियाँ अत्यंत चिंता का विषय हैं।

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हाल ही में मध्यप्रदेश के नीमच जिले में जैन साधु-संतों के साथ हुई मारपीट की घटना अत्यंत निंदनीय एवं चिंताजनक है, जिसने जैन समाज को गहरे आघात पहुँचाया है। ऐसे शांतिप्रिय एवं संयमित जीवन जीने वाले संतों के साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है और धार्मिक सहिष्णुता के लिए भी एक गंभीर चुनौती है ।

महोदय, जैन समाज देश का एक अत्यंत प्राचीन, शांतिप्रिय एवं अनुशासित अल्पसंख्यक समुदाय है, जिसने भारत के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

जैन समाज ने व्यापार, उद्योग, शिक्षा एवं चिकित्सा के क्षेत्र में देश को सशक्त बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है।

जैन संतों द्वारा अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह एवं संयम के सिद्धांतों ने भारतीय संस्कृति की नींव को गहराई दी है।

जैन समुदाय ने हमेशा राष्ट्र निर्माण को प्राथमिकता दी है एवं सामाजिक सौहार्द्र बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इस पृष्ठभूमि में, आज जैन समाज की धार्मिक आस्थाओं एवं प्रतिष्ठानों पर हो रहे हमले अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

हम, जैन मिलन समिति, कोरबा (छत्तीसगढ़) की ओर से, इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए आपसे सविनय निवेदन करते हैं कि:

1. उपरोक्त घटना की उच्चस्तरीय निष्पक्ष जांच कर दोषियों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही की जाए।

2. देशभर में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने हेतु स्पष्ट दिशानिर्देश एवं सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किए जाएं।

3. भारत सरकार की ओर से यह सशक्त संदेश जाए कि देश में सभी धर्मों एवं आस्थाओं का समान रूप से सम्मान होगा एवं धार्मिक असहिष्णुता को कोई स्थान नहीं मिलेगा।

3. श्री सम्मेद शिखरजी, गिरनारजी तथा अन्य प्रमुख जैन तीर्थस्थलों पर हो रहे अवैध अतिक्रमण एवं व्यवसायिक गतिविधियों पर रोक लगाने हेतु केंद्र व संबंधित राज्य सरकारों से ठोस कार्यवाही की मांग की जाए।

 

5. जैन तीर्थस्थलों के संरक्षण एवं प्रबंधन हेतु एक उच्चस्तरीय विशेष समिति (कमेटी) का गठन किया जाए, जिसमें जैन समाज के वरिष्ठ प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया जाए।

4. जैन समाज की धार्मिक स्वतंत्रता, संस्थानों की सुरक्षा एवं अस्तित्व की रक्षा हेतु आवश्यक विशेष सहयोग एवं संरक्षण प्रदान किया जाए।

 

हमें विश्वास है कि आप इस संवेदनशील एवं गम्भीर विषय पर शीघ्र संज्ञान लेते हुए आवश्यक कार्यवाही करेंगे तथा जैन समाज को न्याय दिलाने में अपनी निर्णायक भूमिका निभाएंगे।

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