भारत में जल्दी रिटायरमेंट: सपना या वित्तीय भ्रम? प्रीति अग्रवाल

देश की युवा वर्कफोर्स तेजी से ऐसा सपना देख रही है कि वह 40 साल की उम्र में आर्थिक आज़ादी पा लेगी और नौकरी छोड़कर अपने मनपसंद शौक, घूमना-फिरना या परिवार संग वक्त बिताएगी। सोशल मीडिया और FIRE (Financial Independence, Retire Early) जैसी ग्लोबल मुहिम ने इस सोच को और हवा दी है। मगर सच्चाई यह है कि बढ़ती महंगाई, ऊंची बेरोजगारी, और अब भी कमजोर बचत की आदतों के चलते जल्दी रिटायरमेंट अधिकांश युवा परिवारों के लिए महज एक वित्तीय फैंटेसी बनकर रह गई है.

HSBC की रिपोर्ट के अनुसार एक आरामदायक रिटायरमेंट के लिए भारत में लगभग ₹3.5 करोड़ की आवश्यकता है, ताकि लंबी उम्र, बढ़ते खर्च, और अनिश्चितता के दौर में जीवन चल सके। लेकिन औसत भारतीय की बचत इससे आधी भी नहीं होती और अधिकतर नौजवान निवेश-प्लानिंग में देर करते हैं या जरूरी डिसिप्लिन नहीं ला पाते। सर्वे में 43% युवा 55 से पहले रिटायर होना चाहते हैं, लेकिन सिर्फ 11% ही अपने रिटायरमेंट फंड को लेकर आश्वस्त हैं.

जल्दी रिटायर होने का आकर्षण जरूर है—फ्रीडम, कम तनाव, खुद की मर्जी का जीवन। लेकिन लाइफस्टाइल, एमरजेंसी, मेडिकल और परिवार के खर्च को देखते हुए गणित साफ है: भारत में जल्दी रिटायरमेंट अभी अधिकांश के लिए एक सपना है, जिसे पूरा करने के लिए बहुत शुरू से पैसे जुटाने, समझदारी से निवेश और कड़ी आर्थिक अनुशासन की जरूरत है।

The Finocrats सलाह देते हैं कि यदि जल्दी आर्थिक आज़ादी चाहिए तो वार्षिक खर्च का 25 से 30 गुना फंड, डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो, और महंगाई को ध्यान में रखते हुए लंबे समय तक बचत करनी होगी। अन्यथा “जल्दी रिटायरमेंट” का सपना एक-संज्ञान-भ्रम बन सकता है

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