EMI बनाम SIP: आपका कल तय करने वाला चुनाव: प्रीति अग्रवाल

हर महीने जब सैलरी अकाउंट में आती है, तो अधिकतर भारतीयों के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा होता है – पैसा ईएमआई (EMI) में लगाया जाए या एसआईपी (SIP) में? ईएमआई से हमें तुरंत घर, कार या गैजेट जैसे प्रोडक्ट्स मिल जाते हैं, लेकिन यह भविष्य की आय पर बोझ डालती है। वहीं एसआईपी धीरे-धीरे चलती है, शुरू में छोटा और धीमा लगता है, लेकिन समय के साथ यह आपकी बचत को दोगुना-तिगुना कर सकती है। यही कारण है कि इसे लंबी अवधि का सबसे सशक्त निवेश माना जाता है।

भारत में इस समय औसत कर्ज़दार पर करीब ₹4.8 लाख का कर्ज है, जबकि जुलाई 2025 में ही निवेशकों ने करीब ₹26,700 करोड़ एसआईपी में लगाए। आंकड़े बताते हैं कि जहां ईएमआई से कर्ज़ बढ़ रहा है, वहीं एसआईपी से संपत्ति बन रही है। घर का लोन ईएमआई एक मजबूरी के साथ-साथ सुरक्षा भी देता है, क्योंकि यह भविष्य में एक स्थायी संपत्ति बनाता है। लेकिन कार या गैजेट लोन आपकी जेब ढीली करता है और उसकी वैल्यू घटती रहती है।

एसआईपी की ताकत उसके अनुशासन और धैर्य में है। छोटे-छोटे निवेश 15-20 साल में करोड़ों की संपत्ति बना सकते हैं। साथ ही इसमें लचीलापन भी है—आप इसे रोक सकते हैं, बदल सकते हैं या इमरजेंसी में पैसे निकाल सकते हैं। इसके विपरीत, ईएमआई आपकी कमाई को बाँध देती है और मुश्किल समय में विकल्प कम कर देती है।

The finocrats सलाह देते हैं कि ईएमआई केवल उन्हीं चीज़ों के लिए लें जिनकी वैल्यू समय के साथ बढ़ती है, जैसे घर या शिक्षा। साथ ही, कोशिश करें कि आपकी ईएमआई आय का 30% से ज्यादा न हो। और जब कोई ईएमआई खत्म हो, तो उसी रकम को एसआईपी में लगाना शुरू करें। यही रणनीति लंबे समय में कर्ज़ से संपत्ति की ओर आपका सफर आसान बना सकती है।

कुल मिलाकर, ईएमआई और एसआईपी दोनों आपके जीवन का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन फर्क इस बात से पड़ेगा कि आप किस चीज़ के लिए ईएमआई ले रहे हैं और किस अनुशासन के साथ एसआईपी जारी रख रहे हैं। आपका आज का चुनाव ही आपके कल की आर्थिक आज़ादी तय करेगा।

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