नारायणपुर ज़िले में स्वास्थ्य सेवाएं संकट में: डॉक्टरों और स्टाफ को 6 महीने से नहीं मिला नक्सल प्रभावित क्षेत्र प्रोत्साहन भत्ता (सीआरएमसी), चिकित्सकों की भारी कमी

नारायणपुर, छत्तीसगढ़ — नक्सल प्रभावित ज़िले नारायणपुर में स्वास्थ्य विभाग गहरे संकट से जूझ रहा है। ज़िला अस्पताल से लेकर ग्रामीण प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी और सीएचसी ) तक डॉक्टरों की भारी कमी के साथ-साथ कार्यरत चिकित्सा एवं नर्सिंग स्टाफ को पिछले छह महीनों से सीआरएमसी(नक्सल प्रभावित क्षेत्र प्रोत्साहन भत्ता) नहीं मिला है, जिससे कर्मियों में गहरा असंतोष और निराशा व्याप्त है।

डॉक्टरों की अनुपस्थिति से चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था
ज़िला अस्पताल नारायणपुर सहित कई उपकेंद्रों में डॉक्टरों की बेहद कमी है। अधिकांश डॉक्टर, जो पहले तैनात थे, वे पिछले पांच महीनों से अवैतनिक अवकाश (लीव विदाउट पे) पर हैं। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं लगभग ठप हो गई हैं। गर्भवती महिलाओं, बच्चों और आपातकालीन रोगियों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है।

विशेषज्ञ डॉक्टरों का इस्तीफ़ा: गंभीर प्रभाव

मूल वेतन राशि की समस्याओं से तंग आकर हाल ही में ज़िला अस्पताल नारायणपुर के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अरविंद वांकर और नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. एल.एन. वर्मा ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है। इससे विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और मातृ-शिशु स्वास्थ्य सेवाओं पर गहरा असर पड़ा है। वर्तमान में अस्पताल में कोई भी सीज़ेरियन ऑपरेशन नहीं हो पा रहा है, जिससे गंभीर मामलों में मरीज़ों को दूसरे ज़िलों में रेफर करना पड़ रहा है।

निराशाजनक फैसला: एक भी पद नहीं मिला हालिया एमबीबीएस बांड पोस्टिंग में

इस पूरे संकट के बीच संचालनालय स्वास्थ्य सेवाये की हालिया 10 जून 2025 को आई एमबीबीएस ग्रामीण बॉन्ड पोस्टिंग (मार्च 2025 पासआउट) की सीट मैट्रिक्स में नारायणपुर जिला अस्पताल को एक भी पद आवंटित नहीं किया गया, जो अत्यंत चिंता का विषय है। जबकि ज़िले की स्वास्थ्य सुविधाएं पहले से ही स्टाफ की भारी कमी से जूझ रही हैं।

सीआरएमसी प्रोत्साहन न मिलने से स्वास्थ्यकर्मी निराश

सीआरएमसी न मिलने से टूटा मनोबल
नारायणपुर जैसे संवेदनशील और दुर्गम क्षेत्र में कार्यरत स्वास्थ्यकर्मी अपने जीवन को जोखिम में डालकर सेवा दे रहे हैं। ऐसे में सीआरएमसी जैसी प्रोत्साहन राशि का छह महीने तक न मिलना न केवल न्यायसंगत नहीं है, बल्कि इससे उनके मनोबल पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कई कर्मचारी अब स्थानांतरण या अवकाश का विकल्प चुनने पर विवश हैं।

एक तरफ पुलिस बना रही रिकॉर्ड, दूसरी ओर स्वास्थ्य सेवाये बेहाल

जहाँ एक ओर पुलिस विभाग नक्सल उन्मूलन में लगातार उल्लेखनीय सफलता हासिल कर रहा है, वहीं दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग की यह निष्क्रियता आम नागरिकों को बुनियादी चिकित्सा सेवा से वंचित कर रही है। ज़रूरत इस बात की है कि शासन तुरंत संज्ञान लेकर ज़िले को पर्याप्त चिकित्सक उपलब्ध कराए और लंबित प्रोत्साहन राशि का शीघ्र वितरण सुनिश्चित करे।

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