रॉबर्ट कियोसाकी के पैसिव इनकम के 3 नियम – क्या भारत में हो सकते हैं कारगर? प्रीति अग्रवाल
आज के समय में पैसिव इनकम केवल एक विलासिता नहीं बल्कि ज़रूरत बन चुकी है। नौकरी की आमदनी पर पूरी तरह निर्भर रहना अब सुरक्षित विकल्प नहीं रहा। महंगाई, नौकरी की अनिश्चितता और बढ़ती जिम्मेदारियों के बीच हर निवेशक के लिए अतिरिक्त आय का साधन आवश्यक है। इसी दिशा में मशहूर लेखक और निवेश गुरु रॉबर्ट कियोसाकी, जिन्होंने रिच डैड पुअर डैड लिखी, पैसिव इनकम बनाने के लिए तीन अहम नियम बताते हैं। सवाल यह है कि क्या ये नियम भारत जैसे देश की वित्तीय परिस्थितियों में काम कर सकते हैं?
कियोसाकी का पहला नियम है – ऐसे एसेट खरीदें जो आपके लिए काम करें। उनका मानना है कि पैसिव इनकम तभी बनेगी जब आपके पास ऐसे निवेश हों जो लगातार रिटर्न उत्पन्न करते रहें, जैसे कि रियल एस्टेट से किराया, स्टॉक्स से डिविडेंड, म्यूचुअल फंड्स या बॉन्ड से ब्याज। भारत में यह सिद्धांत पूरी तरह लागू होता है, लेकिन इसके लिए सही निवेश विकल्प चुनना बेहद जरूरी है। उदाहरण के लिए, भारत में रियल एस्टेट से किराए की आय कई बार उम्मीद से कम होती है, लेकिन म्यूचुअल फंड्स और सरकारी बॉन्ड जैसे साधन स्थिर आय दे सकते हैं।
दूसरा नियम है – कर्ज को दुश्मन नहीं बल्कि साधन बनाएं। कियोसाकी मानते हैं कि अगर कर्ज का उपयोग समझदारी से किया जाए तो यह पैसिव इनकम बढ़ाने का जरिया बन सकता है। उदाहरण के लिए, अगर आप लोन लेकर रियल एस्टेट में निवेश करते हैं और उससे मिलने वाला किराया आपके EMI से अधिक है, तो यह कर्ज आपके लिए आय पैदा कर रहा है। भारत में यह मॉडल बड़े शहरों में काम कर सकता है, लेकिन छोटे शहरों या गलत लोकेशन में यह जोखिमभरा भी साबित हो सकता है। इसलिए भारतीय निवेशकों को ‘गुड डेट’ और ‘बैड डेट’ में फर्क करना आना चाहिए।
तीसरा नियम है – पैसिव इनकम को फिर से निवेश करें। कियोसाकी कहते हैं कि अगर आपकी अतिरिक्त आय को खर्च करने के बजाय दोबारा निवेश किया जाए तो यह कंपाउंडिंग के ज़रिए तेजी से बढ़ेगी। भारतीय निवेशक भी इस रणनीति को म्यूचुअल फंड्स में SIP या स्टॉक्स में डिविडेंड री-इन्वेस्टमेंट के जरिए आसानी से अपना सकते हैं। यही तरीका लंबे समय में बड़ी संपत्ति बनाने में मदद करता है।
कुल मिलाकर, रॉबर्ट कियोसाकी के ये तीनों नियम भारत में भी अपनाए जा सकते हैं, लेकिन निवेशक को अपनी जोखिम लेने की क्षमता, बाजार की समझ और स्थानीय आर्थिक हालात को ध्यान में रखते हुए रणनीति बनानी चाहिए। सही योजना और अनुशासन के साथ ये सिद्धांत भारतीय निवेशकों को भी स्थायी पैसिव इनकम और आर्थिक स्वतंत्रता दिला सकते हैं।









